काहे की दोस्ती
जो खिलखिला के हँसी देख कर मुझको दुखी देख कर मेरी हँसी जो हो गई चिडचिडी जो दोस्ती हो मतलब पर टिकी वो दोस्ती काहे की दोस्ती जो दारु पीने से पहले रोते रहे जो दारु पी कर भी फ़िर रो पड़े जिन जिन को हम नहीं थे पसंद उन उन से हम क्यों जा भिड़े जो बर्बादी हमारी की हसरत लिये मिलते रहे दिल में नफ़रत लिये जब ज़रुरत पड़ी तो लात मार दी दोस्ती की वो झूठी तस्वीर फाड़ दी वो वहाँ है पड़ी इज्ज़त मेरी जो दोस्तों ने मेरी पूरी उतार दी जो न आई काम समय पर कभी वो दोस्ती काहे की दोस्ती
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