खामोशियों में दर्द

मैं खामोशियों  में दर्द छुपाता रहा मगर
दर्द भी चलाक था
ख़ामोशीयों में बस गया
कहा छोड़ी चतुर सन्नाटों ने कोई कसर
पल भर का सन्नाटा हमसफ़र बन गया
होकर नाराज़ खुद से
फिर रहा मैं दर ब दर
क्या दगाबाज़ है ये सफ़र ?
या मेरा मंज़र गुज़र गया?

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