हर समस्या का हल संवाद नहीं होता
कुछ संवाद ऐसे
जिनका आदि तो
होता है
अंत नहीं होता
जब आसुंओं से भी
न भरे जख्म
तो उनका कोई
मलहम नहीं होता
ऐसे में
जब आग उगलते हैं शोले
तो मसले हल भी होते हैं
कि हर समस्या का हल
संवाद नहीं होता
जब चलती हैं आंधियां
तो पेड़ झुक भी जाते हैं
फ़िर बातें बहोत की हमने
पर अब और परोपकार नही होता
जब आग उगलते हैं शोले ...
फ़िर बिना तूफानों के
भी डूब जाती हैं किश्तियाँ
सभी किश्तियों का
मझदार नहीं होता
जब आग उगलते हैं शोले ...
है गरज हमे वतन
के शहीदों की
कि हर नाग का
फ़न कुचलना जानते हैं हम
जाया कभी शहीदों का
बलिदान नहीं होता
जब आग उगलते हैं शोले ...
बंद दरवाजों में भी
सुलगती हैं चिंगारियां
कि हर चिंगारी का आगाज़
सरेआम नहीं होता
जब आग उगलते हैं शोले ...
बचपन में कभी पड़ी थी कहानी
जो खूब लड़ी थी
वो थी
झांसी की मर्दानी
कह दो बुजदिलों से
खून सिर्फ मर्दों का
लाल नहीं होता
जब आग उगलते हैं शोले ...
कहते हैं वो "ठीक है"
भाषण के अंत में
अरे इतना निर्मम तो
समाज का गद्दार नहीं होता
बन बैठे प्रधानमंत्री
बिना चुनाव के
क्या ये जनतंत्र का
बलात्कार नहीं होता?
जब आग उगलते हैं शोले ...
बहोत हुई आवभगत
विदेशी बहू की
बस अब और भरष्टों का
आतिथ्य सत्कार नहीं होता
फिर बलिदानी तो
भगत सुभाष भी थे
केवल गांधियों से
देश आज़ाद नहीं होता
जब आग उगलते हैं शोले
तो मसले हल भी होते हैं
कि हर समस्या का हल
संवाद नहीं होता
जिनका आदि तो
होता है
अंत नहीं होता
जब आसुंओं से भी
न भरे जख्म
तो उनका कोई
मलहम नहीं होता
ऐसे में
जब आग उगलते हैं शोले
तो मसले हल भी होते हैं
कि हर समस्या का हल
संवाद नहीं होता
जब चलती हैं आंधियां
तो पेड़ झुक भी जाते हैं
फ़िर बातें बहोत की हमने
पर अब और परोपकार नही होता
जब आग उगलते हैं शोले ...
फ़िर बिना तूफानों के
भी डूब जाती हैं किश्तियाँ
सभी किश्तियों का
मझदार नहीं होता
जब आग उगलते हैं शोले ...
है गरज हमे वतन
के शहीदों की
कि हर नाग का
फ़न कुचलना जानते हैं हम
जाया कभी शहीदों का
बलिदान नहीं होता
जब आग उगलते हैं शोले ...
बंद दरवाजों में भी
सुलगती हैं चिंगारियां
कि हर चिंगारी का आगाज़
सरेआम नहीं होता
जब आग उगलते हैं शोले ...
जो खूब लड़ी थी
वो थी
झांसी की मर्दानी
कह दो बुजदिलों से
खून सिर्फ मर्दों का
लाल नहीं होता
जब आग उगलते हैं शोले ...
भाषण के अंत में
अरे इतना निर्मम तो
समाज का गद्दार नहीं होता
बन बैठे प्रधानमंत्री
बिना चुनाव के
क्या ये जनतंत्र का
बलात्कार नहीं होता?
जब आग उगलते हैं शोले ...
विदेशी बहू की
बस अब और भरष्टों का
आतिथ्य सत्कार नहीं होता
फिर बलिदानी तो
भगत सुभाष भी थे
केवल गांधियों से
देश आज़ाद नहीं होता
जब आग उगलते हैं शोले
तो मसले हल भी होते हैं
कि हर समस्या का हल
संवाद नहीं होता
my two cents to "Daamini"
ReplyDeletevery gud ladke keep it up....
ReplyDeleteSahi hai dost, Good Job!!
ReplyDeletebahut badiya dost
ReplyDelete