इश्क़ मेँ कुछ ऐसा हो जाता है
सुना है इश्क़ मेँ कुछ ऐसा हो जाता है खामोश हवाओं में दर्द नज़र आता है खामोशियाँ लगती हैं सताने ऐसे की हर तरफ़ मेहबूब नज़र आता है। आदतें लगती हैं बुझाने पहेलियाँ ताने लगती हैं मारने सहेलियाँ सन्नाटों की क्या कहिये, बिना 'उनके' महफ़िलों में भी कहाँ सुकून आता है । जब देखतें हैं नज़रों में उनकी तो मयख़ाने याद आते हैं डूब कर इश्क़ में उनके छलकते पैमाने याद आते हैं हो कर फ़ना इश्क़ में हीर रांझे दीवाने याद आते हैं ।